क्या हम सब सिर्फ नियति के हाथ का खिलौना हैं?
कहा तो यही जाता है की इन्सान अपनी तकदीर खुद रचता है,अपने हाथो की लकीर वह खुद बनाता है .खुदी को कर बुलंद इतना.....या फिर भगवन भी उसी की मदद करता है.....इत्यादि-इत्यादि.पर क्या वाकई में ऐसा हो पाता है?हम सोचते कुछ हैं हो कुछ और जाता है.महीनों से या कह सकतें हैं कभी सालों से किसी बात की सारी तैयारी ध्वस्त हो जाती है,नियति कुछ और ही माया कर जाती है.यह सिर्फ किसी घटना या परिस्थिति के लिए सच नही होता है,कभी कभी किसी व्यक्ति पर हम इतना विश्वास कर लेतें हैं पर वो उस लायक नहीं होता है और कभी कोई बिलकुल अनजाना एकदम अपना हो जाता है.शायद हमारी इन्द्रियां इतनी जाग्रत नहीं होतीं हैं कि हम भविष्य का सही अनुमान कर सकें.
नियति हमेशा क्रूर नही होती है,पर जब अपना सोचा -चाहा बात बनती नहीं है तब उस वक्त ऐसा महसूस होता है....कि नियति हमारे विरुद्ध है.हम दुखी होते हैं,किस्मत को कोसते भी हैं.फिर धीरे धीरे परिस्थितियों में इंसान ढल जाता है.ऐसा नही है कि प्रकृति हमेशा हमारे विरूद्ध ही षड्यंत्र करती है,कभी कभी नियति चमत्कार भी दिखाती है,जहाँ इन्सान कि बुधि काम करना बंद कर देती है.ऐसा कम ही महसूस होता है क्यूँ कि अधिकतर हम अपने ऊपर किस्मत कि मेहरबानियों को नही गिनते है....
फिर भी इतना तो मैं मानती ही हूँ कि भगवन उसी कि मदद करता है जो कोशिश करतें हैं,इसी विश्वास पर दुनिया कायम है...हमारी कोशिशे जारी हैं.नियति जितना खेले हमारे साथ .....
bahut khoob
जवाब देंहटाएं.धन्यवाद Shobhaakar ji
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