रविवार, 15 सितंबर 2013

माँ

तुम थी  ,मेरे लिए यही बहुत था।

तुम्हारी चारो तरफ ,घूमती मेरी जिन्दगी।

मेरी हर बात तुम से ही जुडी

मेरी हर सोच तुम तक  ही मुड़ी।

तुम खुश रहती  ,मैं हंस पड़ती।

किसी और से मुझे था मतलब कहाँ

केवल तुम से  आबाद था मेरा जहाँ 

जाने कैसे कब उम्र गुजर गयी ………

जाने कैसी बिमारियों में तुम  घिर गयी ।

भूल बैठी हो तुम  मुझे ,खुद को ,सब को

रखा है याद सिर्फ अपनी बचपन को।

निकल गएँ हैं हम सब जीवन से तेरे

मानों  सिर्फ मौसी -मामा है तेरे।

मम्मी हो तुम, मैं हूँ तेरी बिटिया ।

विस्मृति की घोर अँधेरी  छाया। ……

एक दिन टलेगी जब तुम जागोगी।

मुझसे हंसोगी तुम मुझसे बोलोगी।

मैं इन्तेजार इन्तेजार इन्तेजार करूंगी

तब तक ……………………

तुम हो ,मेरे लिए यही बहुत है।