रविवार, 23 मार्च 2014

सुख समंदर



अनंत व्योम अर्श से आगंतुक
जलधि ,
किनारों से मिलने की हसरत में
शताब्दियों से आते हैं बारम्बार
दौड़ते भागते उछलते  बार बार
मिलते हैं ,
प्यार यहीं छोड़ लहरें लौट जातीं हैं।
 

लहरों का किनारों से नाता है गहरा
सहस्त्र हस्तों से थाम प्यार सारा
अम्बु दल उलीच देती है
सुख सौभाग्य ढेर सारा।
असीम वरुणालय
करुणा आपार
अथक निहारे मन नयन।

जो कहना है कह दो
जो मांगना हो मांगो
देता है जलधि सबको
मनचाहा मन भाता
दोनों बाजुओं को फैलाकर
भर दो जीवन रत्नाकर       

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