मंगलवार, 10 जून 2014

किधर जा रहे हो भैया

गर्मी की उमस भरी शाम थी ,छत पर टहल रहा था कि तभी रमेश की पुकार सुनाई दी। दुमंजिले से ही झाँका तो हड़बड़ाते हुए उसने कहा,चल जल्दी चिड़िया फँसी है। मन मयूर खिल उठा ,जल्दी से मैं सीढ़ियों से उतरने लगा तभी उषा की आवाज आई "किधर जा रहे हो भैया ?"आता हूँ ,कह मैं रमेश के साथ चल पड़ा। मनोज अपनी गर्ल फ्रेंड जिसके साथ वह दो महीनो से घूम रहा था को अपने हॉस्टल के कमरे में बड़ी मुश्किल से बहला फुसला कर लाया था। हॉस्टल पहुंचा तो देखा मनोज ,सुरेश ,बाबू अपना काम कर मूंछ ऐठ रहें थे ,चल फटा फट लग जा कह मुझे मनोज के कमरे में धकेल दिया। लड़की परकटी पंछी की तरह तड़प रही थी और हाथ जोड़ विनती कर रही थी ,हूँ ह ! मैं क्यों पीछे रहूं ,तभी आवाज आई "किधर जा रहे हो भैया ?" ये आवाज शायद साथ ही आ गयी थी  . पता नहीं क्यों मूड ही ख़राब हो गया और मैं चुप चाप घर लौट आया और चादर से मुुंह ढँक सो गया। 
  सुबह किसी के झिंझोड़ने से नींद खुली ,देखा पुलिस आई हुई है। पर ररर ! मैंने तो कुछ नहीं किया ,मैं हकलाने लगा। सामने उषा खड़ी थी ,पता नहीं उसने थूका कि नहीं पर मुझे छींटे तो पड़े थे। 
 लड़की ने हिम्मत दिखाई थी ,पहले वाली लडकियां तो चुपचाप घर चली जाती थी। जेल में हम पांचो की जिंदगी बद से बदतर थी। मेरे घर से कोई जमानत करने भी नहीं आया था। महीनो बाद अदालत में मैं लड़की के सामने उसी तरह हाथ जोड़ विनती कर रहा था जैसे उस दिन वह कर रही थी ,"मैंने कुछ नहीं किया ,मैंने कुछ नहीं किया" कि मैं रट लगाये हुए था।  जज और लड़की दोनों ने ही मुझसे पुछा कि उस दिन मैंने क्यों नहीं कुछ किया ?क्यों नहीं मैंने उसे बचाया ?
कितना भी मुुंह धो रहा हूँ ,उषा के थूक चेहरे से हटते ही नहीं हैं। लड़की का रेप तो शायद एक दिन हुआ पर हमारा हर पल हो रहा है। 

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