रविवार, 12 अक्तूबर 2014

इस दीपावली कुछ नया करें

इस दीपावली कुछ नया करें 1

 खुशियों और रौशनी का पर्व दिवाली अब महज कुछ दिन ही रह गया हैं। आइये इस वर्ष कुछ जुदा कुछ अलग ढंग से इसे मनाएं। उसकी तैयारी आज से ही शुरू करें। गुप्त दान का बड़ा महत्व है। कहतें हैं दान का सौ गुना हमे वापस मिल जाता है किसी न किसी रूप में । आज ही एक मिटटी का गुल्लक या कोई बंद डिब्बा ले। शाम को घर लौटने पर जो रेजगारी और छोटे नोट आपके बटुए में बच रहें हो उन्हें इसमें डाल दें। दिवाली के दिन इसे बिना खोले ,बिना गिने किसी अनजान जरूरतमंद गरीब को इसे दे दें। यकीन मानिये उस गरीब की चेहरे की चमक के आगे आपके चीनी बल्ब की रौशनी फीकी पड़ जायेगी। मैंने  अपनी सहेली उपासना से दिवाली के पहले ये गुप्त दान करना सीखा है आपभी इस बात का प्रसार करें और इस दीपावली हर गरीब के चेहरे पर खुशियों का दीप प्रज्ज्वलित करें। 

इस दिवाली कुछ नया करें 

भारत और इंडिया की दूरी बढ़ते जा रही है। हैं तो दोनों एक ही देश के वासी पर रहन सहन ,सोच विचार के स्तर पर फर्क बढ़ती जा रही है। सो इस नए चमचमाते इंडिया के सुखी सम्पन्न लोगो से अपील है कि इस दिवाली कुछ ऐसा करें कि अपने ही देश के अल्पसुविधा प्राप्त लोगो के जीवन भी रोशन हो जाएँ। ये चमचमाते सुविधावंचित चेहरे ही हमारे दिवाली को और रोशन कर देंगे। यदि आपके पास कुछ ऐसी राय हो जो इस दिवाली हम औरो के लिए कर सकें तो अवश्य बताएं। फिलहाल दिवाली पर पुराने रद्दी ,अखबार ,जूते,बोतल शीशी  ,कपडे किसी कबाड़ी वाले को बेचने से अच्छा होगा कि किसी गरीब कचरा बीनने वाले बालक को दे कि वह इन्हे बेच कुछ पैसे कमा ले। 



इस दिवाली कुछ नया करें 
दिवाली में घरो को साफ करने की परम्परा है। हर कोने ,हर अलमारी ,हर कमरे की सफाई होती है। अवधारणा है कि दीपावली की रात धन की देवी लक्ष्मी सिर्फ साफ़ घरों में ही जाना पसंद करती हैं। कितना ही अच्छा हो कि सिर्फ हमारा घर ही नहीं हमारे घर की आस पास की भी सफाई हो जाए। जिस बिल्डिंग में हम रहतें हों ,जिस मोहल्ले में हम रहतें हैं वह सब भी चमचमा जाये। कितना ही अच्छा हो जिस कचरे की ढेर से हो हम रोज गुजरते हैं वह साफ़ हो जाए। वह बजबजाती नालियां साफ़ हो जाए जो प्रतिदिन हमारे मार्ग में पड़तीं हैं। सरकार जितनी भी कार्यक्रम चला ले सफल वो तभी होगा जब जमीनी स्तर पर हर नागरिक सहभागी होगा। सफाई का भी यही है ,जब तक प्रत्येक व्यक्ति सफाई के प्रति जागरूक नहीं होगा ,राष्ट्र कचरा पेटी बना रहेगा। क्यों ना हम सब मोहल्ला समिति बना पहले जागरूकता का प्रसार करें फिर सफाई आंदोलन। बहुत मुश्किल या असंभव नहीं हैं। घर के छोटे बच्चे को हम यदि कूड़ेदान का प्रयोग सीखा दे ,बुजुर्गो को सम्मान पूर्वक याद दिला दे कि कचरा दान जगह पर है। कुछ चंदा कर बड़ी बड़ी कचरा पेटियां यत्र तत्र रख दे। हर मुहल्लावासी नालियों को साफ रखने के लिए तत्पर हो जाए। घरों या दुकानो से कचरा बुहार रोड पर ना फेंके। देखा जाये तो ये उस मोहल्ले के वासी ही तय कर सकते हैं कि कैसे सफाई रखी जाए। 

  बस हमारी थोड़ी सी सजगता और जागरूकता इस दिवाली गंदे रहने और गंदगी फैलाने की आदत से हमे सदा के लिए निजात दिला देगी। 




दिवाली और उपभोक्तावाद -जागो ग्राहक 
बचपन में हम सुना करते थे कि दिवाली के एक दिन पहले धनतेरस होता है उसदिन जो कुछ खरीदा जाये वह तेरह गुना हो जायेगा (?) पर कुछ वर्षों से बाज़ारवाद त्यौहार पर कुछ ज्यादा ही हावी होता जा रहा है। एक से एक लुभावने ऑफर के साथ जहां बाजार सज जाता है वहीँ अखबारों में बड़े बड़े विज्ञापन आने लगतें हैं उन तथाकथित शुभ मुहूर्तों का जिनमे खरीदारी करना कितना शुभ होगा। एक से एक नए नए ज्योतिषाचार्य उवाच आने लगते हैं की किन मुहूर्त में किन राशि के जातकों को क्या खरीदना चाहिए। इनदिनों खरीदारी भी छोटी मोटी चीजों की नहीं बल्कि सोना चाँदी हीरे मोती के जेवरात से घर जमीन तक की खरीदारी कितना शुभ हो सकता है इसी में अखबार रंगे रह रहें हैं। विज्ञापन भी इतने लुभावने तरीके के होतें हैं कि यदि फलां मुहूर्त में ऐसा न लिया तो बस क़यामत ही आ जाएगी।
बाजार का काम है ग्राहकों को खींचना ,इन शुभ लग्न और घडी के चक्करों से बचते हुए ही अपनी जरूरत की वस्तुएं खरीदें और त्यौहार की ख़ुशी मनाएं। 




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